दुर्गा पूजा किस महीने में मनाई जाती है?

दुर्गा पूजा हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो देवी दुर्गा की आराधना और उनके महाकाव्य रूप के उपासना का पर्व है। यह त्योहार विशेष रूप से भारत के पूर्वी भागों, विशेषकर पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा और बिहार में धूमधाम से मनाया जाता है। हालांकि पूरे भारत में इसे भव्यता के साथ मनाया जाता है, लेकिन इसके विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है।

यह महत्वपूर्ण पर्व आश्विन मास (सितंबर-अक्टूबर) के शुक्ल पक्ष के समय मनाया जाता है। यही समय नवरात्रि के नौ दिनों का होता है, जिसके दौरान लोग देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करते हैं। दुर्गा पूजा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी एक बड़ा पर्व है। इस लेख में, हम दुर्गा पूजा के महीने, उसके महत्व और इस उत्सव की परंपराओं के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

दुर्गा पूजा का समय

दुर्गा पूजा का मुख्य पर्व आश्विन मास में मनाया जाता है, जो हिंदू पंचांग के अनुसार सितंबर और अक्टूबर के बीच आता है। यह वह समय होता है जब देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस को पराजित कर धर्म की स्थापना की थी। इस पूजा का मुख्य उद्देश्य देवी दुर्गा के शक्ति स्वरूप को पूजना है। नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान दुर्गा पूजा का आयोजन होता है, जो विजयादशमी (दशहरा) के दिन समाप्त होता है।

आश्विन मास का समय विशेष रूप से इस पर्व के लिए इसलिए चुना गया है क्योंकि इसे शरद ऋतु का प्रारंभ माना जाता है। भारतीय परंपरा में ऋतु परिवर्तन का समय धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है। इस समय को “शरद नवरात्रि” कहा जाता है। इसके अतिरिक्त, देवी दुर्गा की पूजा का समय इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अंधकार पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

दुर्गा पूजा की शुरुआत

दुर्गा पूजा की शुरुआत शारदीय नवरात्रि के पहले दिन होती है, जिसे महालया कहते हैं। महालया के दिन, लोग पवित्र गंगा नदी में स्नान करते हैं और अपने पूर्वजों को तर्पण (श्रद्धांजलि) अर्पित करते हैं। यह दिन देवी दुर्गा के पृथ्वी पर आगमन का प्रतीक माना जाता है। महालया के बाद से ही दुर्गा पूजा की तैयारियां जोरों पर शुरू हो जाती हैं।

महालया के साथ ही देवी दुर्गा की महाकाली स्वरूप में आराधना की जाती है और इसे बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में देखा जाता है। इसके बाद के नौ दिनों में नवरात्रि की पूजा शुरू होती है, जिसमें प्रतिदिन देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। दुर्गा पूजा का मुख्य आकर्षण सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन होता है, जब पूजा पंडालों में देवी की प्रतिमाओं की स्थापना की जाती है और बड़े-बड़े आयोजनों का आयोजन होता है।

नवरात्रि के नौ दिन

दुर्गा पूजा के दौरान नवरात्रि के नौ दिन अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। इन नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है। प्रत्येक दिन एक विशेष रूप को समर्पित होता है और उसे अलग-अलग तरीके से पूजा जाता है। इन नौ दिनों की पूजा का मुख्य उद्देश्य आत्मशुद्धि और बुराई पर अच्छाई की विजय प्राप्त करना होता है।

नवरात्रि के नौ दिन इस प्रकार होते हैं:

  1. प्रथम दिन (शैलपुत्री): शैलपुत्री देवी की पूजा की जाती है, जो पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं।
  2. द्वितीय दिन (ब्रह्मचारिणी): देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है, जो तपस्या का प्रतीक हैं।
  3. तृतीय दिन (चंद्रघंटा): चंद्रघंटा देवी की पूजा की जाती है, जो वीरता और साहस का प्रतीक हैं।
  4. चतुर्थ दिन (कूष्माण्डा): देवी कूष्माण्डा की पूजा की जाती है, जो सृजन और जीवन की उत्पत्ति का प्रतीक हैं।
  5. पंचम दिन (स्कंदमाता): स्कंदमाता देवी की पूजा की जाती है, जो मातृत्व का प्रतीक हैं।
  6. षष्ठम दिन (कात्यायनी): देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है, जो शक्ति और पराक्रम का प्रतीक हैं।
  7. सप्तम दिन (कालरात्रि): देवी कालरात्रि की पूजा की जाती है, जो बुराई और नकारात्मक ऊर्जा का नाश करने वाली हैं।
  8. अष्टम दिन (महागौरी): महागौरी देवी की पूजा की जाती है, जो शुद्धता और धैर्य का प्रतीक हैं।
  9. नवम दिन (सिद्धिदात्री): देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है, जो सभी सिद्धियों और शक्तियों की प्रदाता हैं।

दुर्गा पूजा का महत्त्व

दुर्गा पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। महिषासुर, जो एक शक्तिशाली राक्षस था, ने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था। देवताओं ने अपनी शक्तियों का प्रयोग कर देवी दुर्गा को महिषासुर का अंत करने के लिए उत्पन्न किया। देवी दुर्गा ने महिषासुर का संहार कर धर्म की स्थापना की।

इस कहानी के आधार पर दुर्गा पूजा न केवल धर्म की विजय के रूप में देखी जाती है, बल्कि यह समाज में नैतिक मूल्यों, न्याय और सत्य की स्थापना का प्रतीक भी है। इसके अलावा, यह पूजा महिलाओं की शक्ति और उनके योगदान को भी सम्मानित करती है। दुर्गा पूजा के समय लोग अपनी सभी समस्याओं और कठिनाइयों को भुलाकर एक साथ मिलकर इस उत्सव को मनाते हैं। यह समय परिवार और समाज के लोगों के साथ मिलकर खुशियों को साझा करने का होता है।

पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा

पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का महत्व विशेष रूप से अधिक होता है। यहाँ यह पर्व सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मनाया जाता है और इसमें कला, संगीत, नृत्य और सामाजिक सहयोग का अनूठा मेल देखा जाता है। कोलकाता में दुर्गा पूजा का आयोजन विशेष रूप से भव्य होता है, जहाँ लाखों लोग विभिन्न पूजा पंडालों में देवी दुर्गा की प्रतिमाओं के दर्शन के लिए आते हैं।

पूजा पंडालों को भव्य तरीके से सजाया जाता है और उनमें देवी दुर्गा की प्रतिमाएँ स्थापित की जाती हैं। इन पंडालों की सजावट और डिजाइनिंग में कला और संस्कृति की झलक मिलती है। विभिन्न थीम पर आधारित पंडाल और मूर्तियाँ दुर्गा पूजा को एक अद्वितीय अनुभव बनाते हैं। पूजा के अंतिम दिन, जिसे विजयादशमी कहा जाता है, देवी दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है, जो इस त्योहार का समापन होता है।

अन्य राज्यों में दुर्गा पूजा

हालांकि पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा सबसे प्रसिद्ध है, लेकिन भारत के अन्य राज्यों में भी इसे भव्यता के साथ मनाया जाता है। असम, ओडिशा, बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और महाराष्ट्र में भी दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है। दक्षिण भारत में यह पर्व “आयुध पूजा” के रूप में मनाया जाता है, जहाँ देवी दुर्गा के साथ-साथ सरस्वती और लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

उत्तर भारत में दुर्गा पूजा के साथ-साथ रामलीला का आयोजन भी होता है, जो राम के जीवन की घटनाओं पर आधारित नाटकीय प्रस्तुति होती है। दशहरे के दिन रामलीला का समापन रावण के पुतले को जलाकर किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

निष्कर्ष

दुर्गा पूजा आश्विन मास में मनाई जाने वाली एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा है। यह पर्व न केवल देवी दुर्गा की महिमा का गुणगान करता है, बल्कि समाज में नैतिक मूल्यों और सत्य की स्थापना का भी प्रतीक है।

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